Monday 26 April 2021

दुःख क्या है ? कौन दे सकता है ?

दुःख क्या है ? कौन दे सकता है ?

आज की जिंदगी में तनाव बहुत बढ़ गया है ऐसा नहीं है। जिंदगी में तनाव पहले भी थे आज भी है और आने वाले कल में भी रहेंगे। अपने आप तनाव चिंता दुख सच में कहीं से आते हैं या हम खुद उसे ढूंढ निकालते हैं ? कभी घड़ी दो घड़ी बैठ कर शांति से यह सोचने की जरूरत है। 
जब हम मां की पेट में होते हैं उस वक्त न कोई विचार होता है न कोई चिंता न दुख, कुछ भी नहीं होता फिर भी हम 9 महीने तक आराम से जिंदा रहते हैं। उस वक्त भी हम थे, जब यह शरीर जो आज हमारे पास है वह नहीं था, यह जो मन हमारे पास है वह नहीं था, और मन नहीं था तो बहुत सीधी बात है कोई विचार भी नहीं था। तो क्या यही वजह थी कि हम तनाव मुक्त थे ? तो क्या यही वजह थी कि दुख का हमें कोई पता नहीं था ? 
एक बहुत सीधी दिखाई देने वाली बात है जब मां के पेट में हम होते हैं बहुत छोटे, फिर पेट में से बाहर आते हैं एक नन्हा सा शरीर लेकर और जब हम बड़े होते हैं एक बड़ा सा मजबूत शरीर के साथ, यह तीनों परिस्थितियों में हम पहले से ही थे और अब इस घड़ी में भी है तो यह जो शरीर बड़ा हुआ है वह मैं नहीं हूं। आईने के सामने खड़ा होता हूं और जो मैं दिखाई देता हूं वह मैं नहीं हूं। मेरा होना यह शरीर का होना नहीं हो सकता, मैं इससे कुछ अलग हूं। 
वहीं मां के पेट में कोई सोच नहीं थी मेरे पास, कोई मेरा अलग से विचार नहीं था । मां के जरिए मेरी जिंदगी चलती थी, उसकी सांस से मेरी सांस चलती थी उसके खाने से मेरा शरीर बन रहा था । एक एक चीज का बराबर खयाल कुदरत ने रखा हुआ था । हम बहुत छोटे मतलब एक कोश में से इतने बड़े हो गए । यह कुदरत ने बनाया एक कोष में से न जाने क्या क्या बना है, पूरा शरीर बना है, सांस चलती है, बोल सकते हैं, जो चमड़ी से कान बने है उससे सुन सकते है,  चमड़ी से आंख बनी उससे देख सकते हैं । यह कितना बड़ा चमत्कार हुआ है । यह कुदरत का एक चमत्कार ही कह सकते हैं। बिना किसी सोच के यह सब कुछ कितने सही तरीके से चल रहा था। कोई था जो यह सब कुछ संभाले हुए था। कोई था जो यह सब कर रहा था मैं नहीं कर रहा था।
उम्र के बढ़ते बढ़ते न जाने हम में कैसे कर्ता भाव जन्म ले लेता है, यह सोच जाने कहां से आती है कि सब कुछ मैं कर रहा हूं, जबकि यह पूरा ब्रह्मांड जो सुनियोजित तरीके से चल रहा है उसमें मैं कुछ भी नहीं हूं। थोड़ा गहरे में जाकर इसे देखें तो यह हमारी सोच हमारे विचार का परिणाम है कि हम अपने आप को कर्ता समझने लगे हैं।
और कर्ता भाव समझते ही दुख की शुरुआत हो जाती है, तुम्हें कोई और दुख नहीं दे रहा है, कोई और तुम्हें दुख दे भी नहीं सकता, ना कभी दिया है ना दे रहा है ना दे सकता है ना दे सकेगा । यह तुम्हारी खुद की उपलब्धि है कि तुमने दुख को गले लगाया है।
दुख से निकलने का बहुत सीधा-सादा रास्ता है, जो भी हो रहा है उसे होने दे, जो पूरा ब्रह्मांड चला रहा है वह तुम्हें भी चलाएगा, उसका कोई अलग से आयोजन नहीं है सिर्फ तुम्हें दुख दे। उसने जब भी तुम्हें बनाया तो दुख और सुख दोनों के बाहर बनाया था, यह हम यानी हमारी सोच हमारे विचार यह समाज है जिन्होंने हमें दुख और सुख में डुबकी लगाना सिखाया जो है ही नहीं। 
अपने विचारों में अपने मन के सागर में न जाने तुम कैसे कैसे दुख और सुख के समंदर बना लेते हो जो तुम्हारे सिवा किसी को नहीं दिखाई देते है। और तुम उसमें डुबकी लगाया करते हो, डुबकी लगाया करते हो उतना भी काफी नहीं है तुम देखते हो कि कोई और भी देखें कि तुम उस में डुबकी लगा रहे हो, तुम दुख से घिरे हुए हो तुम सुख से घिरे हुए हो, तुम जाने किस किस को यह बताना चाहते हो और क्यों बताना चाहते हो ?
मेरे देखें तुम्हें कोई और दुख नहीं दे सकता, यह पूरे अस्तित्व में ऐसी कोई सुविधा नहीं है कि कोई और हमें दुख दे सके, सिवा हमारे विचार।
पूरे दिन में 24 घंटे में कुछ पल अपने साथ बिताए अपने अकेलेपन में बिताए, सब विचार छोड़ छाड़ के विचार शून्यता बैठे कभी, और हम जो हैं उसे देखे भी। 
बहुत छोटी है यह जिंदगी कोई यहां 70 80 100 साल से ज्यादा नहीं निकालने वाला है। यह शरीर छोड़कर ही जाना है। यह रिश्ते यह साथी या आसपास के लोग यह सब छोड़कर ही जाना है । क्यों इतना दुख लेते हो किसके लिए लेते हो ?
अपनी जिंदगी है अपना आनंद है, मुफ्त में मिल रहा है, मिल रहा है क्या मिला ही हुआ है। जानो पहचानो और जिंदगी जी लो।
प्रणाम।

उदयन गोहिल