आती होगी उसे भी याद मेरी या मुझे ही आती है
आखिर ये बात क्या है जो मुहब्बत सी सताती है
होता होगा कोई शायर जो लिखता होगा ग़ज़लें
मुझे तो उसकी याद ही सब बात भूलवा जाती है
शायद, मिलना तुम से न होगा मेरा, यह पता है
सूरज ढला तो दोस्ती जुगनू की रंग भर लाती है
यूं उठ, बैठ, खड़ा हो जाता हूं कभी रातमें नींदसे
ख़्वाब तेरा, सिलवटें बिस्तर की क्या करवाती है
मयखानों से ताल्लुकात रहा बरसों से 'उदयन'
पीते थे कभी आंखो से अब गिलासों से जलाती है
- उदयन
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