Wednesday 2 August 2017

आती होगी उसे भी याद मेरी या मुझे ही आती है

आती होगी उसे भी याद मेरी या मुझे ही आती है
आखिर ये बात क्या है जो मुहब्बत सी सताती है

होता होगा  कोई शायर  जो लिखता होगा ग़ज़लें
मुझे तो उसकी याद ही  सब बात भूलवा जाती है

शायद, मिलना तुम से  न होगा मेरा, यह पता है
सूरज ढला  तो दोस्ती जुगनू की रंग भर लाती है

यूं उठ, बैठ, खड़ा हो जाता हूं कभी रातमें नींदसे
ख़्वाब तेरा, सिलवटें बिस्तर की  क्या करवाती है

मयखानों  से ताल्लुकात  रहा  बरसों से  'उदयन'
पीते थे कभी आंखो से अब गिलासों से जलाती है

- उदयन

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