Wednesday 12 April 2017

मेरी लकिरों ने नसीब के सामने कई सवाल रक्खे है

मेरी लकिरों ने नसीब के सामने कई सवाल रक्खे है
किसके निशां है  जो तुने हलके हलके गाल रक्खे है

खनक चूडि कंगन की बेहद पसंद है मुझे बचपन से
यहां जवानी में सनम, कलाई पे  घड़ी डाल रक्खे है

टकराकर तुफानों से अंधेरों को बिखेरने की बात में
किसी मरजाद दिये ने  रात में होश संभाल रक्खे है

सालों बाद  वो ही पूरानी दस्तक ने  होश  उड़ा दियें
सालों गुज़र गएं  फिर भी इशारों में कमाल रक्खे है

फिर आ गये  वो सामने और जुबां ख़ामोश हो गयी
बाल सफेद हुएं है  बाकी जमाल तो बहाल रक्खे है

न वो मेरा था और न मैं उसका था  आज के दौर में
फिर क्या था जिस से एक दुजे का ख़याल रक्खे है

- उदयन

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