कुछ तजुर्बे जिंदगी के हमें मुँह जुबानी याद है
थी कभी धूप खुशनुमा अब शाम भी बरबाद है
ना कारवां ना मंज़िल ना ही पूरानी पहचान है
है चलती फिरती लाश कि आदमी भी नाबाद है
खुश्बू भीगे गेंसुओं की ज़हन में मेरे बस गयी है
है नही तु पास हमारे, फिर भी दिल आबाद है
वो मसीहाई बांकपन था याँ थी मेरी मुहब्बत
लिखा जब तुझ पर मैनें लफ़्ज़ लफ़्ज़ फवाद है
शोर बरपा तितलीयों का फिर सुने आँगन में
सुने तो मीठी धुन और समझे तो शिवनाद है
- उदयन
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