Saturday 14 April 2018

ये ऐसा-वैसा कैसा तेरा मुस्कुराना था

ये ऐसा-वैसा कैसा तेरा मुस्कुराना था ,
ऐसे,  यहां  तुम्हें आना और जाना था !

बैठे, घड़ी दो घड़ी, कोई  मशवरा हो ,
और, मुझे तेरा नक़ाब भी उठाना था ।

वो चूड़ियां कांच की लाया था साथ ,
गोरी कलाई पे हौले से पहनाना था ।

टूटती एकाद तो चुभ भी सकती थी ,
दर्द न हो ऐसे तेरा हाथ सहलाना था ।

जचेगी कौन से रंग की चूड़ी कहां पे ,
पहनाके छः सात बार मुझे बताना था ।

खा-म-खा जल्दी-जल्दी कर गए तुम ,
फिर रेशमी जुल्फ़ों को सहलाना था ।

रूक जाते कुछ देर तो क्या हो जाता !
कड़ी दुपहरी में चांद को सुलाना था ।

और क्या-क्या बताऊं अरमान अधूरे ,
छोड़ो, चलो, वैसे तो बहुत सताना था ।

- उदयन गोहिल

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