ये ऐसा-वैसा कैसा तेरा मुस्कुराना था ,
ऐसे, यहां तुम्हें आना और जाना था !
बैठे, घड़ी दो घड़ी, कोई मशवरा हो ,
और, मुझे तेरा नक़ाब भी उठाना था ।
वो चूड़ियां कांच की लाया था साथ ,
गोरी कलाई पे हौले से पहनाना था ।
टूटती एकाद तो चुभ भी सकती थी ,
दर्द न हो ऐसे तेरा हाथ सहलाना था ।
जचेगी कौन से रंग की चूड़ी कहां पे ,
पहनाके छः सात बार मुझे बताना था ।
खा-म-खा जल्दी-जल्दी कर गए तुम ,
फिर रेशमी जुल्फ़ों को सहलाना था ।
रूक जाते कुछ देर तो क्या हो जाता !
कड़ी दुपहरी में चांद को सुलाना था ।
और क्या-क्या बताऊं अरमान अधूरे ,
छोड़ो, चलो, वैसे तो बहुत सताना था ।
- उदयन गोहिल
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