Wednesday 22 April 2020

ना वो दिन निकला ना वो खिड़की बोली कभी

ना वो दिन निकला ना वो खिड़की बोली कभी
उस सांवली सी लड़की से मुझे मोहब्बत है अभी

जुल्फ़ें झटकना तो कमाल था, उतना ही नहीं
तिरछी नज़रों से वो खिड़की मुझे तकती थी कभी

उतना क़रीब था चांद कि अभी पकड़ लूं मगर
हथेलियां छूना चाहें तो लकीरें मोड़ लेती है तभी

ख़ैर ये तो बातें मेरी हुई, इस में तुम्हारा क्या है 
तुम अपनी भी सुनना, याद मेरी आएं जब भी

- उदयन गोहिल 

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