ना वो दिन निकला ना वो खिड़की बोली कभी
उस सांवली सी लड़की से मुझे मोहब्बत है अभी
जुल्फ़ें झटकना तो कमाल था, उतना ही नहीं
तिरछी नज़रों से वो खिड़की मुझे तकती थी कभी
उतना क़रीब था चांद कि अभी पकड़ लूं मगर
हथेलियां छूना चाहें तो लकीरें मोड़ लेती है तभी
ख़ैर ये तो बातें मेरी हुई, इस में तुम्हारा क्या है
तुम अपनी भी सुनना, याद मेरी आएं जब भी
- उदयन गोहिल
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