Saturday 22 July 2017

दिन में आंखे तुम्हें देखें

दिन में आंखे तुम्हें देखें, रात ख्वाबोंमें सजाते है
उड़ गई नींद किसी बहाने से तुम्हारे नगमें गाते है

थी आवाज़ मीठी सुरीली बरसो से जो कानों में
अब वो ईयर फोन में बिछड़न की ग़ज़ल बजाते है

सूट बूट व चश्मा टोपी पहनकर जो चलता था
लंबी दाढ़ी - बिखरे बाल, अबका  हाल  बताते  है

ऐसा भी नहीं कि इश्क़में हर कोई यूं मर रहा हो
हैं कुछ आशिक़ ऐसे भी  जो दूसरी गली में जाते है

अब क्या कहे 'उदयन' और वो भी खुदके बारेमें
हैं थोड़े उसके जैसे जो हर सांस पे सनम बुलाते है

- उदयन

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