Saturday 22 July 2017

मेरी आंखोको उसने समंदर बना लिया

मेरी आंखोको उसने समंदर बना लिया
शोख पूरा करके  दिलसे अंतर बना लिया

थी कभी धूप कभी छांव मेरे हालात में
जुल्फ बिखेरकर उसने दिसंबर बना लिया

न पहुंच सकूंगा मैं कभी वो अमिर खाने
सोचकर महल को घर के अंदर बना लिया

मारेगा वो मुझे कभी न कभी कहीं न कहीं
सहूलियत के लिए हाथ, खंजर बना लिया

थी मुहब्बत रोशन इस कदर मेरी जहां में
मिटाकर खुद को हमने कलंदर बना लिया

- उदयन

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