मेरी आंखोको उसने समंदर बना लिया
शोख पूरा करके दिलसे अंतर बना लिया
थी कभी धूप कभी छांव मेरे हालात में
जुल्फ बिखेरकर उसने दिसंबर बना लिया
न पहुंच सकूंगा मैं कभी वो अमिर खाने
सोचकर महल को घर के अंदर बना लिया
मारेगा वो मुझे कभी न कभी कहीं न कहीं
सहूलियत के लिए हाथ, खंजर बना लिया
थी मुहब्बत रोशन इस कदर मेरी जहां में
मिटाकर खुद को हमने कलंदर बना लिया
- उदयन
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