हकीमों से ना होगा इलाज मेरा हुनर ख़ूद का तु आज़माया कर
हो गुफ़्तगू नजरों से और मैं जी जाऊँ नकाब उतना सरकाया कर
फेर नज़रें अपनी रहनुमा मेरे बिख़रे जिस्म के हर एक ज़ज्बें पर
मिलन होगा चाहे जब होगा मुझ दिवाने पर लह़ज़ा बिखराया कर
उभरते उरोज़ लचीले लब संगेमरमर सा तराशा हुआ ये तेरा हुस्न
आगोश़ की आज़माईश, सुलगता बदन, ख्वाबों में सताया कर
होती हो रवानगी होते होते भोर बिचारे बेबस चाँद की 'उदयन'
बिखरे बिस्तर पे जूल्फ़ खोल महजबी उजालों में रूक जाया कर
- उदयन
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