Friday 17 March 2017

हकीमों से ना होगा इलाज मेरा

हकीमों से  ना होगा इलाज मेरा  हुनर ख़ूद का तु आज़माया कर
हो गुफ़्तगू नजरों से और मैं जी जाऊँ नकाब उतना सरकाया कर

फेर नज़रें अपनी रहनुमा  मेरे बिख़रे जिस्म के हर एक ज़ज्बें पर
मिलन होगा चाहे जब होगा मुझ दिवाने पर लह़ज़ा बिखराया कर

उभरते उरोज़ लचीले लब संगेमरमर सा तराशा हुआ ये तेरा हुस्न
आगोश़ की  आज़माईश, सुलगता  बदन, ख्वाबों में  सताया कर

होती हो रवानगी  होते होते भोर  बिचारे बेबस चाँद की 'उदयन'
बिखरे बिस्तर पे जूल्फ़ खोल महजबी उजालों में रूक जाया कर

- उदयन

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