कोई आयें और हमें उसके दर पर ले जाएं
हो साकी सामने और नशा निगाहों से फ़रमाएं
फरक न रहे कुछ दिवानगी के उस दौर में
हो सनम रू ब रू और बंदगी में हम सर जुकाएं
कोस ले चाहे जितना हमें दूनियां गम नहीं
हो मयकदे में कदम फिर आकर ख़ूदा आजमाएं
यूँ ही नही है नशा उन लफ़्जों में आज तक
हो मोहब्बत में शायद गालिब तभी गज़ल जमाएं
निकली है चीरके पर्बतों को सागर मिलन में
हो सफर ऐसा कि कायनात ही सजदा करवाएं
बात आखिरी है खूब काम की सूनो 'उदयन'
हो बसर जिंदगी पलों में, दूजों में ख़ूदा सजाएं
- उदयन
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