सुबह सुबह मेरी आँख खुल गयी, जमाल आ गया
किसी एक दिन यह नहीं खूलेगी, ख़याल छा गया
आजसे बहेतर ओर क्या होगा यह सवाल भा गया
अभी सूरज निकलेगा अभी फूलों में जान छायेगी
मुहब्बत का पंखी यूँ गुनगुनायेगा, कमाल छा गया
आजसे बहेतर ओर क्या होगा यह सवाल भा गया
कहीं कई माँ अपने बच्चों को सीने से दुध पिलाती
तो बेटा, बुढे बापकी लाठी बनेगा, जलाल छा गया
आजसे बहेतर ओर क्या होगा यह सवाल भा गया
मुकम्मल इश्क की पैरवी करते थिरकते कदमों पे
बंदगी-ए-सनम में फिर अज़ीज़ी गुलाल छा गया
आजसे बहेतर ओर क्या होगा यह सवाल भा गया
फिर आज कागज पर किरदार-ए-सनम उभरेगा
फिर मय आँखों में, दिल में साकी, बहाल छा गया
आजसे बहेतर ओर क्या होगा यह सवाल भा गया
- उदयन
जलाल ~ तेज
बहाल ~ मन प्रफुल्लित और प्रसन्न
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