जाने कौन कितना लंबा यह सफर है
जन्मों जन्मों तक चलता यह पहर है
लगाया मौत को गले यूँ कितनी दफ़ा
फिरभी याद नही मरना एक सहर है
छिनती कुछ नही सिवाय जिंदगी के
और हम तो परेशां वही बस क़हर है
मिले जिंदगी में शेर ओ कलाम बहोत
मिले सनम, लगे, मौत में वह बहर है
जी रहा है हर कोई उम्मीद पे यहां
शाम, संग सनम के हर पल दहर है
बहती रहे ता उम्र किनारों से मिलके
समझ, किनारे पर मरती नम लहर है
बहुत सुकुन है मौत में, सोच 'उदयन'
काफी कूछ है जिंदगी में कह जहर है
- उदयन
बहर ~ छंद
दहर ~ युग
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