Friday 17 March 2017

जाने कौन कितना लंबा यह सफर है

जाने  कौन  कितना  लंबा  यह  सफर  है
जन्मों  जन्मों  तक  चलता  यह  पहर  है

लगाया  मौत  को  गले  यूँ  कितनी  दफ़ा
फिरभी  याद  नही  मरना  एक  सहर  है

छिनती  कुछ  नही   सिवाय  जिंदगी  के
और  हम तो  परेशां  वही  बस  क़हर  है

मिले   जिंदगी  में  शेर ओ कलाम  बहोत
मिले  सनम,  लगे,  मौत में  वह  बहर  है

जी  रहा  है   हर  कोई   उम्मीद  पे  यहां
शाम,  संग  सनम  के  हर  पल  दहर  है

बहती  रहे   ता  उम्र  किनारों  से  मिलके
समझ,  किनारे  पर  मरती  नम  लहर  है

बहुत  सुकुन  है   मौत  में,  सोच  'उदयन'
काफी  कूछ  है  जिंदगी में  कह  जहर  है

- उदयन

बहर ~ छंद
दहर ~ युग

No comments:

Post a Comment