हो रही है साज़िश फिर मेरी आज़माईश की
लड़खडाते कदम और मंज़िल सनमखाने की
रोशनी-ए-आफ़ताब में धुंधला नज़र आता है
और तलाश है, चाँदनी में सनम ढूँढ आने की
मिसाल पसंदीदा छोड आया हूँ आशियाने पे
हसिन नज़ारा पहचान उस दर ओ दीवार की
सवाल कितने है जुबां पर जालिम जमाने के
गरीब फ़किर और सनम, बात इम्तिहान की
- उदयन
No comments:
Post a Comment