सोचें, तो उसे कूछ याद नही आ रहा है
बिछड़कर तुमसे यह शख़्स चला आ रहा है
गुनहगार करार दिया दूनियां ने जीसे
वफ़ा की बिमारी से दिल जलाकर आ रहा है
ख़याल पला करते थे मोहब्बत के जहाँ
सल्तनत-ए-हुजूर वही मिटाकर आ रहा है
छिपा लेता था खिला चहेरा हथेलियों में
मयखाने की ओर लकीरें मोड़कर आ रहा है
- उदयन
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