गुज़र रही है तन्हा, जवां इंतजार में वो रातों की बात है
हो न सकी कभी मुकम्मल, वो मुलाकातों की बात है
इत्तिफ़ाक़न मिली थी निगाहें जवानी की दहलीज़ पर
दरम्यािं कूछ न था फिर मचले वो ज़ज्बातों की बात है
इलाज न हुआ वो इश्क़ रहते इबादत में तब्दिल हुआ
तस्बीह में दोहरायी रोज़ अनकही वो बातों की बात है
रहता तख़्त-ए-मोहब्बत पर यह फकिर 'उदयन' कभी
फांसला न कट सका वो दास्तां वो इमारतों की बात है
- उदयन
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