Friday 17 March 2017

गुज़र रही है तन्हा

गुज़र रही है तन्हा, जवां इंतजार में वो रातों की बात है
हो  न सकी  कभी मुकम्मल, वो मुलाकातों की बात है

इत्तिफ़ाक़न मिली थी निगाहें  जवानी की दहलीज़ पर
दरम्यािं कूछ न था फिर मचले वो ज़ज्बातों की बात है

इलाज न हुआ वो इश्क़  रहते  इबादत में तब्दिल हुआ
तस्बीह में दोहरायी रोज़  अनकही वो बातों की बात है

रहता तख़्त-ए-मोहब्बत पर यह फकिर 'उदयन' कभी
फांसला न कट सका वो दास्तां वो इमारतों की बात है

- उदयन

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