ना राज़ हूँ ना साज़ हूँ ना ही मैं समाज हूँ
आता है ख़याल यहीं अनसूना रिवाज़ हूँ
सवालातों के घिरे में ख़डा रखा लोगों ने
बेवज़ह मोहब्बत, बांटता मैं जालसाज़ हूँ
ढूंढ रहा आदमी उसे काबा ओ काशी में
मौजूद है वो भीतर, कहता वो आगा़ज हूँ
जन्मों से गुज़रा हूँ फ़िर भी नहीं समझा
कौन आया कौन गया, रहा मैं इज़ाज हूँ
देखो कभी झांककर ख़ुद में तुम 'उदयन'
मैं नियाज़ मैं इलाज़ और मैं ही नमाज़ हूँ
- उदयन गोहिल
इज़ाज ~ अचम्भा
नियाज़ ~ आवश्यकता
No comments:
Post a Comment