शाम के फ़लक से चूराकर नज़रे पास आ रहा है
देखकर चाँद पूरा फिर मुझे कोई याद आ रहा है
है कशिश मेरी जुस्तजू में ख़ूदा ओ खादिम की
लड़खडाते कदमों से खूद साकी यहां आ रहा है
फिर मुझे कोई याद आ रहा है
मज़हबों की गुफ्तगू में होश की कही बातें न थी
पैगाम लेकर ये पिअक्कड़ अज़ान सुना रहा है
फिर मुझे कोई याद आ रहा है
सफर है ही कितनी जाने कब कज़ा मिल जाये
और ये सनम, न आया सुबह न शाम आ रहा है
फिर मुझे कोई याद आ रहा है
पहूँचा पाये गर कोई अल्फ़ाज मेरी जानाँ तक
फितूर मेरा रात जुगनू सी राह तेरी बता रहा है
फिर मुझे कोई याद आ रहा है
- उदयन
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