Friday 17 March 2017

फिर मुझे कोई याद आ रहा है

शाम के फ़लक से चूराकर नज़रे पास आ रहा है
देखकर चाँद पूरा  फिर मुझे कोई याद आ रहा है

है कशिश  मेरी  जुस्तजू में  ख़ूदा ओ खादिम की
लड़खडाते कदमों से  खूद साकी यहां आ रहा है
फिर मुझे कोई याद आ रहा है

मज़हबों की गुफ्तगू में  होश की कही बातें न थी
पैगाम  लेकर ये  पिअक्कड़  अज़ान सुना रहा है
फिर मुझे कोई याद आ रहा है

सफर है  ही कितनी  जाने कब कज़ा मिल जाये
और ये सनम, न आया सुबह  न शाम आ रहा है
फिर मुझे कोई याद आ रहा है

पहूँचा पाये  गर कोई अल्फ़ाज  मेरी जानाँ तक
फितूर मेरा  रात जुगनू सी  राह तेरी बता रहा है
फिर मुझे कोई याद आ रहा है

- उदयन

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