बनाकर फ़रिश्ता जहां में कौन किसको लाया है
ज़र्रा ज़र्रा मह़क गया, किसी अपने ने बुलाया है
मोहब्बत की राह पे कर्ज कभी चूका न पाऊँगा
अपने सीने से लगाकर जो माँ ने दूध पिलाया है
गुज़र गया गौतम, जाने कैसे इस जंगलियत से
फिर बैठकर मौन, पास में ख़ूदा को बिठाया है
कहता है कौन, बसता नही, मौला मयकदो में
देख हमें, पी दो घूंट, फिर दूनियां को दिखाया है
निशां लबों पे अभी भी है, उन कांटों के 'उदयन'
शौक था जब, फ़ूलों को मैनें सीने से लगाया है
- उदयन
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